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{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
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<poem>मानो तो ख़ुदा की इबादत का साज़ है नज़्म
बेबस खामोशी की आवाज है नज़्म

किसी कब्र में सिसकती मोहब्बत की निगार है नज़्म
आशिकों की रूह से निकली पुकार है नज़्म

हवाओं का भी रुख मोड़ दे वो तूफान है नज़्म
दिल में छुपे दर्द की जुबान है नज़्म

बेंध दे सीना पत्थरों का वो औज़ार है नज़्म
शायर और आशिकों की मजार है नज़्म

चट्टानों पर लिखा इश्क का पैगाम है नज़्म
न भूले सदियों तक 'हकीर' वो इलहाम है नज़्म


१) निगार - प्रतिमा, मूर्ति , २) इलहाम - देववाणी</poem>
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