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|रचनाकार=हरकीरत हकीर
}}
[[Category:नज़्म]]<poem>बरसों पहले
जीवन मर्यादाएं
धूसर धुन्धल चित्र लिए
हिचकोले खाती रहीं.....
गहरी निस्सारता लेकर
कैद में छटपटाती
आंखों में कातरता
भय और बेबसी की
इक तारीकी पूरे वजूद में
उतरती रही ......
वक्त नफ़ासत पूर्ण तरीके से
तस्वीर बनाता रहा ...