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{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=अलगाव / केशव
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>नहीं मरते अमीर
जीवित रहते हैं वैंटिलैटर पर
रख दिये जाते इनके अंग-प्रत्यंग
मेज़ों पर
दिल दिमाग फेफड़े किडनी
सब अलग-अलग
बोलते सब अंग अलग अलग भाषा
नहीं की जाती उनकी मृत्यु की घोषणा
बाईपास डाईलेसिज़, के तुरंत बाद
लेते भागदौड़ प्रतियोगिता में
आते अव्वल
तब लगता है
मौत भगवान के हाथ नहीं
अमीर के हाथ है
अमर से बना अमीर।
गरीब
मरे होते ज़िन्दा होते हुए भी
देना पड़ता इन्हें बार-बार
अपने ज़िन्दा होने का प्रमाण
इनकी मृत्यु घोषित हो जाती
सालों पहले
बीमारी घुसती दबे पाँव
जिसे पालते पोषते चाव से
बखान करते उसके गुणों
अवगुणों का
जब तक ज़िन्दा है
ऐसे दर्द दबती है
ऐसे आराम मिलता है
पस्त होते जाते
धीरे-धीरे-धीरे
कहते हुए अब ठीक हूँ
अब ठीक हूँ
कर देते अपने मृत्यु देन की घोषणा।
मरने के सन्तानें करतीं विश्लेषण
.................पता ही नहीं चला
............ऐसे ही चले गये बोलते-बोलते
अच्छे कर्म किये थे-------------------------।
मौत भगवान के हाथ नहीं गरीब के हाथ है।
</poem>
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|संग्रह=अलगाव / केशव
}}
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<poem>नहीं मरते अमीर
जीवित रहते हैं वैंटिलैटर पर
रख दिये जाते इनके अंग-प्रत्यंग
मेज़ों पर
दिल दिमाग फेफड़े किडनी
सब अलग-अलग
बोलते सब अंग अलग अलग भाषा
नहीं की जाती उनकी मृत्यु की घोषणा
बाईपास डाईलेसिज़, के तुरंत बाद
लेते भागदौड़ प्रतियोगिता में
आते अव्वल
तब लगता है
मौत भगवान के हाथ नहीं
अमीर के हाथ है
अमर से बना अमीर।
गरीब
मरे होते ज़िन्दा होते हुए भी
देना पड़ता इन्हें बार-बार
अपने ज़िन्दा होने का प्रमाण
इनकी मृत्यु घोषित हो जाती
सालों पहले
बीमारी घुसती दबे पाँव
जिसे पालते पोषते चाव से
बखान करते उसके गुणों
अवगुणों का
जब तक ज़िन्दा है
ऐसे दर्द दबती है
ऐसे आराम मिलता है
पस्त होते जाते
धीरे-धीरे-धीरे
कहते हुए अब ठीक हूँ
अब ठीक हूँ
कर देते अपने मृत्यु देन की घोषणा।
मरने के सन्तानें करतीं विश्लेषण
.................पता ही नहीं चला
............ऐसे ही चले गये बोलते-बोलते
अच्छे कर्म किये थे-------------------------।
मौत भगवान के हाथ नहीं गरीब के हाथ है।
</poem>