भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डायरियाँ / सुदर्शन वशिष्ठ

2,240 bytes added, 20:08, 22 अगस्त 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=सिंदूरी साँझ और ख़ामोश ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=सिंदूरी साँझ और ख़ामोश आदमी / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>क्यों इकट्ठा करता हूँ मैं डायरियाँ !

कई सालों की डायरियाँ

ख़ाली
निश्चित है अगली भी रहेंगी
ख़ाली।

नये साल में शौक से
खरीदी ज़ातीं डायरियाँ
भेंट की जातीं
रखी जातीं सहेज कर
दुलार से देखा जाता
बाहरी आवरण
भीतरी काग़ज़
उठा उठा कर, देख देख परख कर
रख दी जातीं।

अगले साल
या उससे अगले साल
इनमें करते बच्चे
बेरहमी से रफ वर्क।

कुछ लोग थे
जो लिखा करते थे डायरियाँ
पर भई डायरी लिखना
खेल नहीं
कौन लिख पाया
आज तक भीतर का सच
आपका सच आप ही जानते हैं
जैसे जानती हैं माँ
बच्चे का पिता, जन्म,स्थान,समय
या जनने की पीड़ा।

फिर क्यों लेता हूँ हर साल
नई नई डायरियाँ।

डायरी भेंट करना भी तो
एक शरारत है
डायरी नहीं चुनौती दी जाती है आपको।

डायरी न लिखो
तो भी चला रहता है जीवन
कोई तो है जो लिखता जाता
लेखा जोखा चुपचाप।

पल पल छिन छिन
लिखा जा रहा जीवन
क्या इबारत से ही
लिखी जाती हैं डायरियाँ।</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits