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{{KKRachna
|रचनाकार=जगदीश रावतानी आनंदम
|संग्रह=
}}
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बचपन में मैं रोता था
खूब चिला चिला कर रोता था
माँ बाप चाचा चची भाई बहन
सबका खूब प्यार हासिल करता था
हाँ, मैं जान भूज कर रोता था
अब भी मैं रोता हूँ
पर ये देखता हु किसीने देखा तो नहीं
</poem>
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बचपन में मैं रोता था
खूब चिला चिला कर रोता था
माँ बाप चाचा चची भाई बहन
सबका खूब प्यार हासिल करता था
हाँ, मैं जान भूज कर रोता था
अब भी मैं रोता हूँ
पर ये देखता हु किसीने देखा तो नहीं
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