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रात भी नींद भी कहानी भी
हाय, क्या चीज है जवानी भी
एक पैग़ामे-ज़िन्दगानी भी
आशिक़ी मर्गे-नागहानी भी।
शादकामों को ये नहीं तौफ़ीक़
लाख हुस्ने-यक़ीं से बढ़कर है
उन निगाहों की बदगुमानी भी।
तंगना -ए - दिले - मलूल४ में है
बह्रे-हस्ती की बेकरानी भी।
देख दिल के निगारखाने में
जख़्में - पिनहाँ५ की है निशानी भी।
ख़ल्क़ क्या-क्या मुझे नहीं कहती
आये तारीख़े-इश्क़ में सौ बार
मौत के दौरे-दरम्यानी भी।
अभी शेष है ... ... ...
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