भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वो पेंचो-ताब तेरी ज़ुल्फ़े-पुर्शिकन के मिले।
नज़र से मतला - ए - अनवार हो गयी हस्ती
कि आफ़ताब मिला मुझको, इस किरन के मिले।
हर-एक नक़्शे - निगारीं, हर-एक निक्हतो - रंग
लक़ा - ए - नाज़<ref>देखने लायक, महबूब</ref> में जल्वे चमन-चमन के मिले।
मिज़ाजे-हुस्न चलो ऐतदाल<ref>संतुलन</ref> पर आया
जो रोज़ रूठ के मिलते थे, आज मन के मिले।
अरे इसी से तो जलते है शादकामे - हयात<ref>सुखी जीवन वाले</ref>
कि अह्ले - दिल को ख़ज़ाने-ग़मो-मेहन<ref>दुखदर्द</ref> के मिले।
इसी से इश्क़ की नीयत भी हो गयी मशक़ूक
गवाँ दिये कई मौके, जो हुस्नेजन के मिले।
अदा में खिंचती थी तस्वीर कृष्नो-राधा की
निगाह में कई अफ़्साने नल-दमन के मिले।
हवासे-ख़मसा पुकार उट्ठे, यकजबाँ होकर
कई सुबूत तेरी ख़ूबी-ए-बदन के मिले।
निसारे-कज़कुलही, शोख़ी -ए- बहारे - चमन
गुर इस अदा से शगूफ़ों को बाँकपन के मिले
हयात वो निगहे-शर्मगीं जिसे बाँटे
वही शराब जो तेरी मिज़ह से छन के मिले।
ख़ुदा गवाह कि हर - दौरे - जिन्दगी में ’फ़िराक़’
नये पयामे-गुनह मुझको अह्रमन के मिले।
{{KKMeaning}}
</poem>