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|रचनाकार=उमाशंकर तिवारी
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जो हवा में है, लहर में हैक्यों नहीं वह बात , मुझमें है?
शाम कन्धे कन्धों पर लिये लिए अपनेजिन्दगी ज़िन्दगी के रू --रू चलनारोशनी का हमसफर हमसफ़र होना
उम्र की कन्दील का जलना
आग जो जलते सफ़र में है
क्यों नहीं वह बात मुझमें है।
रोज आग जो जलते सफ़र में हैक्यों नहींवह बात मुझमें है? रोज़ सूरज की तरह उगना
शिखर पर चढ़ना, उतर जाना
घाटियों पर में रंग भर जानाफिर सुरंगों से गुजर गुज़र जाना जो हँसी कच्ची उमर में हैक्यों नहीं वह बात मुझमें है।है?
एक नन्हीं जान चिडि़या का
डा़ल से उड़कर हवा होना
सात रंगों की लिए दुनिया
वापसी में नींद भर सोना
जो खुला आकाश स्वर में है
क्यों नहीं वह बात
मुझमें है?
</poem>
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