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|रचनाकार=अवतार एनगिल
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}}
<poem>दफ्तर जाते
नहीं मिली जुराबें
नन्दलाल फिर
बीवी पर बिगड़ रहा है
जबकि.बिस्तर पर पसरा
उसका दसवीं फेल पुत्र
फिल्मी नायिका के स्कर्ट पर लिखी
इबारत पढ़ रहा है
हालांकि,दीवार-सटी नाली से
रुका हुआ पानी
जैसे ही सड़ रहा है

घड़ी की सुई के पीछे भागती
पिछड़ती
पत्नी 'नूरी' ने
अभी-अभी
दोनों पुत्रियों को
बस्ताबद्ध कर
बाहर धकेला है
और
पुत्र के एक फिल्मी जुमले को
झेला है
उसके ढलते-निचुड़ते जिस्म पर
पलते पतिदेव
लगातार बड़बड़ा रहे हैं----
नूरी चिल्लाती है
क्यों मेरी जान खा रहे हैं?

जब जुराब पुराण की गुहार
पुकार बनती है
उफना जाता दूध छोड़कर
वह रसोईघर से बाहर आती है
उसी जगह से
वही जुराबें निकालकर
पति के पास पटक
भुनभुनाती हुई वापस जाती है

इस बार
जुराबें मिल जाने की शरमिंदगी को
वह ऊँचा बोलकर छिपा रहे हैं
पड़ोसी जानते हैं
नन्दलाल दफ़्तर जा रहे हैं ।
</poem>
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