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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>हँसी की बात क्या है ग़र मुझे हँसना नहीं आता।
ये क्या कम है किसी भी हाल में रोना नहीं आता।
कोई तूफान को जाकर बता दे बात इतनी सी,
मेरे घर के चिराग़ों को अभी बुझना नहीं आता।
ये कैसा वक्त है जब हो गया हर चीज़ का पानी,
अगर दिल भी निचोड़े खून का कतरा नहीं आता।
चलो अब बन्द भी कर लोग दो दिलों के साथ दरवाज़े,
सुना है खिड़कियों के रास्ते दरिया नहीं आता।
उन्हीं आँखों की खातिर हो गईं नम मेरी आँखें भी,
कभी सोते हुए जिनको कोई सपना नहीं आता।
उसी पँछी ने आख़िर कर लिया सर आसमाँ इक दिन,
जिसे लोग कहते थे इसे उड़ना नहीं आता।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>हँसी की बात क्या है ग़र मुझे हँसना नहीं आता।
ये क्या कम है किसी भी हाल में रोना नहीं आता।
कोई तूफान को जाकर बता दे बात इतनी सी,
मेरे घर के चिराग़ों को अभी बुझना नहीं आता।
ये कैसा वक्त है जब हो गया हर चीज़ का पानी,
अगर दिल भी निचोड़े खून का कतरा नहीं आता।
चलो अब बन्द भी कर लोग दो दिलों के साथ दरवाज़े,
सुना है खिड़कियों के रास्ते दरिया नहीं आता।
उन्हीं आँखों की खातिर हो गईं नम मेरी आँखें भी,
कभी सोते हुए जिनको कोई सपना नहीं आता।
उसी पँछी ने आख़िर कर लिया सर आसमाँ इक दिन,
जिसे लोग कहते थे इसे उड़ना नहीं आता।
</poem>