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Kavita Kosh से
|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र
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हँसी आ रही है सवेरे से मुझको
कि क्या घेरते हो अंधेरे में मुझको!
शिकायत नहीं क्यों कि मतलब नहीं है
न ख़ालिक न मालिक न चेरे से मुझको!
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