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{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एनगिल
}}
<poem>अभी-अभी
गंगा के किनारे
पंजों के बल चलती हुई
अक्तूबर की स्याह शाम
लहराती हुई गुज़र गई है
अभी-अभी निगली है
अंधेरे के नाग ने
सूर्य की दीप्तिमान मणि
और तन गया है
दसों दिशाओं में रात का काला तम्बु
कहते हैं एक बार
उठा था यमुना से भी अंधकार
पर बैठा था किनारे
एक आदि ऋषि
अंजलि में लिए
एक मुट्ठी रोशनी
तब,सुबह की दहलीज़ पर
झील से उसकी एक आंख ने
दी थी दस्तक
और झिलमिलाया था
झील के तीसरे नेत्र पर
एक रोगी का स्वस्थ माथा
देखते हो न मेरे देश !
धूल में लौटते देश !
सतलुज, व्यास रावी, चिनाब के
उतरी छोर पर
जेहलम, सिंध,नर्मदा,ताप्ती और
महानदी के उत्तरी छोर पर
गोदावरी, गंगा,कृष्णा,कावेरी,यमुना।
ब्रह्मपुत्र के उत्तरी छोर पर
चमक रहा है ध्रुव
अटल तपस्या का बेटा
देखा है जिसने
अंधियारी रातों में
बहता प्रकाश
पहचाना है जिसने
चांदी के सफेद पहियों वाला
भागता ख़ूबसूरत रथ
और उसके पीछे झूलते
भागते बच्चे
ध्रुव ने तो देखी थी
रथ के समांतर भागती मौन नागिन
बच्चे भागते थे, जीतते थे,हारते थे :
और रथवान को आवाज़ देते थे :
'ठहरो तो ! ठहरो ज़रा !
सारथी कुबेर
हम सहयात्री हैं'
पत्थरों पर पांव टिका
नाचती हुई ख़ूबसूरत शाम
नदी को संगीत देती है
और देती है झील सी एक आंख
सुबह और शाम की देहरी पर दस्तक
इधर बैठा है
शायद किसी नदी किनारे
कोई आदि ऋषि
अंजलि में लिए
एक मुट्ठी रोशनी
देखता है घ्रुव
अटल तपस्या का बेटा
अंधियारी रातों में बहता प्रकाश
कुबेर के रथ के साथ-साथ भागती है
चिकने पेट वाली मौन नागिन
विनाश के बाद खिली इस धूप में
सहस्रबुद्धियों की भीड़ में
एक-बुद्धि दादर चिल्लाता है :
'विनाश की इस बेला में
मुझे कुछ नहीं दिखता,
मुझे कुछ नहीं दिखता।
</poem>
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|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एनगिल
}}
<poem>अभी-अभी
गंगा के किनारे
पंजों के बल चलती हुई
अक्तूबर की स्याह शाम
लहराती हुई गुज़र गई है
अभी-अभी निगली है
अंधेरे के नाग ने
सूर्य की दीप्तिमान मणि
और तन गया है
दसों दिशाओं में रात का काला तम्बु
कहते हैं एक बार
उठा था यमुना से भी अंधकार
पर बैठा था किनारे
एक आदि ऋषि
अंजलि में लिए
एक मुट्ठी रोशनी
तब,सुबह की दहलीज़ पर
झील से उसकी एक आंख ने
दी थी दस्तक
और झिलमिलाया था
झील के तीसरे नेत्र पर
एक रोगी का स्वस्थ माथा
देखते हो न मेरे देश !
धूल में लौटते देश !
सतलुज, व्यास रावी, चिनाब के
उतरी छोर पर
जेहलम, सिंध,नर्मदा,ताप्ती और
महानदी के उत्तरी छोर पर
गोदावरी, गंगा,कृष्णा,कावेरी,यमुना।
ब्रह्मपुत्र के उत्तरी छोर पर
चमक रहा है ध्रुव
अटल तपस्या का बेटा
देखा है जिसने
अंधियारी रातों में
बहता प्रकाश
पहचाना है जिसने
चांदी के सफेद पहियों वाला
भागता ख़ूबसूरत रथ
और उसके पीछे झूलते
भागते बच्चे
ध्रुव ने तो देखी थी
रथ के समांतर भागती मौन नागिन
बच्चे भागते थे, जीतते थे,हारते थे :
और रथवान को आवाज़ देते थे :
'ठहरो तो ! ठहरो ज़रा !
सारथी कुबेर
हम सहयात्री हैं'
पत्थरों पर पांव टिका
नाचती हुई ख़ूबसूरत शाम
नदी को संगीत देती है
और देती है झील सी एक आंख
सुबह और शाम की देहरी पर दस्तक
इधर बैठा है
शायद किसी नदी किनारे
कोई आदि ऋषि
अंजलि में लिए
एक मुट्ठी रोशनी
देखता है घ्रुव
अटल तपस्या का बेटा
अंधियारी रातों में बहता प्रकाश
कुबेर के रथ के साथ-साथ भागती है
चिकने पेट वाली मौन नागिन
विनाश के बाद खिली इस धूप में
सहस्रबुद्धियों की भीड़ में
एक-बुद्धि दादर चिल्लाता है :
'विनाश की इस बेला में
मुझे कुछ नहीं दिखता,
मुझे कुछ नहीं दिखता।
</poem>