भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आते हुए लजाएगी / माधव कौशिक

1,246 bytes added, 14:23, 16 सितम्बर 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माधव कौशिक |संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव क...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>आते हुए लजाएगी इक्कीसवीं सदी
कैसे नज़र मिलाएगी इक्कीसवीं सदी ।

आतंक, युद्ध, भूख ने इतने सितम किए
किसको गले लगाएगी इक्कीसवीं सदी ।

बारूद सर पे लादकर बारूद ओढ़कर
बारूद ही बिछाएगी, इक्कीसवीं सदी ।

गंगा का जल भी दोस्तों पावन नहीं रहा
किस की क़सम उठाएगी इक्कीसवीं सदी ।

सपनों के इंद्रजाल में सबको लपेटकर
ख़ुद भी फ़रेब खाएगी इक्कीसवीं सदी ।

पिछली सदी सलीब पर लटकी रही अगर
लाशों पे चल के आएगी इक्कीसवीं सदी ।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits