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ख़ुश्बू के आस-पास / माधव कौशिक

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<poem>ख़ुश्बू के आसपास हैं कुछ और लोग भी
मेरी तरह उदास हैं कुछ और लोग भी ।

शायद हक़ीक़तों ने सब कुछ बदल दिया
सपनों में बदहवास हैं कुछ और लोग भी ।

कालिख में क़ैद हो गए सांसों के क़ाफिले
फिर भी घुली कपास हैं कुछ और लोग भी ।

तुम ही कहां गुलाम हो उनकी निगाह के
पुश्तों से उनके दास हैं कुछ लोग भी ।

बेहतर है अपने आप को रखिए ज़मीन पर
मज़बूरियों में ख़ास हैं कुछ और लोग भी ।</poem>
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