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Kavita Kosh से
जहां के लिये सिरफ़िरे ही सही हैं
सभी की नज़र से गिरे ही सही हैं
अगर इस ज़माने में सच बात कहना
बुरा है तो फ़िर हम बुरे ही सही हैं
तिशन्गी और खलिस शामो-सहर होती है
जिन्दगी रास न आये तो ज़हर होती है
सख्त हो जाये तो औरों को मिटा सकती है
तल्ख हो जाये तो ये खुद पे कहर होती है