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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>बिछी जाती है....
चाँदनी झीनी
सांझ सकारे ..
उगा है चंदा...
बहका है ....
आँगन का कोना ,
पलकों के होंठो में
क़ैद है ...
भीगी ओस सा
एक सपना ,
तारों सा ......
लुक छुप के मिलना ,
अधखिले कलियों
के यौवन ..,
बहते मंद ..
हवा के झोंके ,
हरसिंगार की ..
मदमाती खुशबू ,
नलिनी दल ..
पर कांपते जल बिन्दु ..
हम तुम दोनों ..
खोये खोये से
यूं ही बहती
इस फिजा के संग
सुबह होने से पहले
भोर के तारे से
न जाने क्यों ,कैसे
खिल से जाते हैं
काल दिशाओं में बहते
न जाने किस मंजिल की
तलाश करते जाते हैं !! </poem>
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