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1-10 मुक्तक / प्राण शर्मा

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|रचनाकार=त्रिलोचन
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<poem> १
फ़र्क़ नहीं पड़ता मन्दिर या मधुशाला हो
चरणामृत हो या अंगूरों की हाला हो
अपने लिए ए मीत बराबर दोनों ही हैं
ईश्वर की प्रतिमा हो अथवा मधुबाला हो

सबको बराबर मदिरा का प्याला आयेगा
इक जैसा ही मदिरा को बाँटा जायेगा
इसको ज्यादा उसको कम मदिरा ए साक़ी
मधुशाला में ऐसा कभी न हो पाएगा

रुष्ट न हो जाये कोई भी मधुबाला से
वंचित कोई भी ना रह जाये हाला से
द्वार खुला रहता है इसका इसीलिए नित
प्यासा कोई लौट न जाये मधुशाला से

जिसका मन मधुशाला जाने से रंजित है
जिसके मन में मदिरा की मस्ती संचित है
मदिरा पीने का अधिकार उसे है केवल
जिसका सारा जीवन साक़ी को अर्पित है

मधुशाला में नकली हाला भी चलती है
मधु तो क्या नकली मधुबाला भी चलती है
मधुशाला में सोच समझकर जाना प्यारे
अब जग में नकली मधुशाला भी चलती है

पूरी बोतल पीने का आगाज़ न कर तू
दोस्त, अभी मदिरा पर इतना नाज़ न कर तू
अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है मेरे प्यारे
छोटे पंखों से ऊँची परवाज़ न कर तू

तेरे लिए मदिरा ए जाहिद होगी गाली
मेरे लिए है मदिरा सबसे चीज़ निराली
तेरे लिए मदिरा ए जाहिद होगा विष पर
मेरे लिए मदिरा है जीवन देने वाली

सावन की मदमस्त घटा है मदिरा प्यारे
चन्दन वन की मस्त हवा है मदिरा प्यारे
जीवन की चिंताओं से क्यों घबराता है
चिंताओं की एक दवा है मदिरा प्यारे

यह न समझना मुझमें सद्‌व्यवहार नहीं है
यह न समझना मुझमें लोकाचार नहीं है
जाहिद, माना मेरा है सम्बंध सुरा से
यह न समझना मुझको जग से प्यार नहीं है
१०
बीवी – बच्चों पर जो घात क्या करता है
पल – पल गुस्से की बरसात किया करता है
दोस्त, समझना उसे कभी मत मधु का प्रेमी
पीकर जो घर में उत्पात किया करता है</poem>
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