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राष्ट्रभाषा / वीरेंद्र मिश्र

No change in size, 18:39, 18 सितम्बर 2009
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<poem>
 </poem>स्वागत करती हिंदी सबका, बिखरा कुंकुम रोली
धरती-जाई भाषा अपनी, जननी, अपनी बोली
मिट्टी में मिल जाएँ न सपने, यह है उनकी झोली
धरती-जाई भाषा अपनी, जननी, अपनी बोली।
</poem>
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