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चिर सजग आँखें उनींदीआज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
अचल हिमगिरि के हॄदय मेंआज चाहे कम्प हो ले!या प्रलय के आँसुओं में मौनअलसित व्योम रो ले;आज पी आलोक कोड़ोले तिमिर की घोर छायाजाग या विद्युत शिखाओं मेंनिठुर तूफान बोले!पर तुझे है नाश पथ परचिन्ह अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!
बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!
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