भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केदारनाथ सिंहनरेश सक्सेना|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}<poem>झरने लगे नीम के पत्ते बढ़ने लगी उदासी मन की,<br /><br /> ::उड़ने लगी बुझे खेतों से<br />::झुर -झुर सरसों की रंगीनी,<br />::धूसर धूप हुई मन पर ज्यों --<br />::सुधियों की चादर अनबीनी, <br /><br />दिन के इस सुनसान पहर में रुक-सी गई प्रगति जीवन की|<br /><br />::साँस रोक कर खड़े हो गये<br />::लुटे-लुटे-से शीशम उन्मन,<br />::चिलबिल की नंगी बाँहों में<br />::भरने लगा एक खोयापन,<br /><br />बड़ी हो गई कटु कानों को "'चुर-मुर" ' ध्वनि बांसों बाँसों के वन की|<br /><br />::थक कर ठहर गई दुपहरिया, <br />::रुक कर सहम गई चौबाई,<br />::आँखों के इस वीराने में--<br />::और चमकने लगी रुखाई,<br /><br /> प्रान, आ गए दर्दीले दिन, बीत गई गईं रातें ठिठुरन की|<br /><br /poem>