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सोचता हूँ बैठ तट पर -<br>
क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!<br>
था तुम्हें मैंने रुलाया!<br><br><br> -- हरिवंशराय बच्चन के कविता संग्रह "निशा निमन्त्रण" से<br><br>