भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
"[[मापदण्ड बदलो / दुष्यंत कुमार]]" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (बेमियादी) [move=sysop] (बेमियादी))
{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
|संग्रह= सूर्य का स्वागत / दुष्यंत कुमार
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम,
जुए के पत्ते-सा
मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,
कोपलें उग रही हैं,
पत्तियाँ झड़ रही हैं,
मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ,
लड़ता हुआ
नई राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ ।
अगर इस लड़ाई में मेरी प्रगति या अगति का<br>साँसें उखड़ गईं,यह मापदण्ड बदलो तुममेरे बाज़ू टूट गए,<br>जुए मेरे चरणों में आँधियों के पत्ते सा<br>समूह ठहर गए,मैं अभी अनिश्चित हूँ ।<br>मुझ मेरे अधरों पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैंतरंगाकुल संगीत जम गया,<br>कोपलें उग रही हैंया मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच गईं,<br>पत्तियाँ झड़ रही हैंतो मुझे पराजित मत मानना,<br>मैं नया बनने के लिए खराद समझना –तब और भी बड़े पैमाने पर चढ़ मेरे हृदय में असन्तोष उबल रहा हूँहोगा,<br>लड़ता हुआ<br>मेरी उम्मीदों के सैनिकों की पराजित पंक्तियाँनयी राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ एक बार औरशक्ति आज़माने कोधूल में खो जाने या कुछ हो जाने कोमचल रही होंगी ।एक और अवसर की प्रतीक्षा मेंमन की क़न्दीलें जल रही होंगी ।<br><br>