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याचना / रघुवीर सहाय

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|रचनाकार=रघुवीर सहाय
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<poem>
युक्ति के सारे नियंत्रण तोड़ डाले,
मुक्ति के कारण नियम सब छोड़ डाले,
अब तुम्हारे बंधनों की कामना है|
विरह यामिनी में न पल भर नींद आई,
क्यों मिलन के प्रात वह नैनों समाई,
एक क्षण में ही तो मिलन में जागना है|
युक्ति के सारे नियंत्रण तोड़ डाले,<br>मुक्ति के कारण नियम सब छोड़ डाले,<br>अब तुम्हारे बंधनों की कामना है|<br><br>विरह यामिनी मी न पल भर नींद आयी,<br>क्यों मिलन के पात वह नैनों समायी,<br>एक क्षण में ही तो मिलन मी जागना है| <br><br>यह अभागा प्यार ही यदि है भुलाना,<br>तो विरह के वे कठिन क्षण भूल जाना,<br>हाय जिनका भूलना मुझको मना है |<br><br>मुक्त हो उच्छ्वास अंबर मापता है,<br>तारकों के पास जा कुछ कांपता काँपता है,<br>श्वास के हर कम्प मी में कुछ याचना है|<br/poem>
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