भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रे मन, राम सों करि हेत / सूरदास

27 bytes added, 10:54, 24 अक्टूबर 2009
|रचनाकार=सूरदास
}}
[[Category:पद]]
राग सारंग
<poem>
रे मन, राम सों करि हेत।
 
हरिभजन की बारि करिलै, उबरै तेरो खेत॥
 
मन सुवा, तन पींजरा, तिहि मांझ राखौ चेत।
 
काल फिरत बिलार तनु धरि, अब धरी तिहिं लेत॥
 
सकल विषय-विकार तजि तू उतरि सागर-सेत।
 
सूर, भजु गोविन्द-गुन तू गुर बताये देत॥
</poem>
भावार्थ :- यह जीवन क्षेत्र है, पर क्षणस्थायी है। इसकी यदि रखवाली करनी है, इसे
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits