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Kavita Kosh से
वे मुस्काते फूल, नहीं<br>
जिनको आता है मुर्झानामुरझाना,<br>
वे तारों के दीप, नहीं <br>
जिनको भाता है बुझ जाना <br><br>
वे सूने से नयन,नहीं <br>
जिनमें बनते आंसू आँसू मोती, <br>
वह प्राणों की सेज,नही <br>
जिसमें बेसुध पीड़ा, सोती <br><br>
नहीं,नहीं जिसमें अवसाद, <br>
जलना जाना नहीं, नहीं <br>
जिसने जाना मिटने का स्वाद!<br>
क्या अमरों का लोक मिलेगा <br>
तेरी करुणा का उपहार<br>
रहने दो हे देव ! अरे<br>यह मेरे मिटने क अधिकार!<br>