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कल और आज / नागार्जुन

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गोरैयों के झुंड,
अभी कल तक
पथराई हुई थ‍ीथी
धनहर खेतों की माटी,
अभी कल तक
और आज
ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं
तुम्‍हारे तम्हारे तंबू,
और आज
छमका रही है पावस रानी
और आज
आ गई वापस जान
दूब की झुलसी शिरायों शिराओं के अंदर,और आज बिदा विदा हुआ चुपचाप ग्रीष्‍मग्रीष्मसमेटकर अपने लाव-लश्‍कर।लश्कर।
</poem>
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