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वहीं मिलता नीरव भाषण।
जहाँ बनती बनता पतझार वसन्त
जहाँ जागृति बनती उन्माद,
जहाँ मदिरा देती चैतन्य
वहीं मिलता नीरव भाषण।
नहीं जिसमें अनन्त अत्यंन्त विच्छेद
बुझा पाता जीवन की प्यास,
करुण नयनों का संचित मौन
प्रतीक्षा बन जाती अंजन
वहीं मिलता नीरव भाषण।
पहन कर जब आँसू के हार
मुस्करातीं वे पुतली श्याम,