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|संग्रह=खिलखिलाहट / काका हाथरसी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>खिल-खिल खिल-खिल हो रही, श्री यमुना के कूल<br>अलि अवगुंठन खिल गए, कली बन गईं फूल<br>कली बन गईं फूल, हास्य की अद्भुत माया<br>रंजोग़म हो ध्वस्त, मस्त हो जाती काया<br>संगृहीत कवि मीत, मंच पर जब-जब गाएँ<br>
हाथ मिलाने स्वयं दूर-दर्शन जी आएँ
</poem>
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