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चैत का गीत / अजित कुमार

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|संग्रह=अंकित होने दो / अजित कुमार
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:चैत में कटी है जौ ।
 
मेहनत ने किया काम,
 
बिकी फ़सल, लगे दाम्।
 
जुटे खरीदार, साहूकार
 
:मिले रुपये सौ ।
 
नन्हे जेठुअई धान्।
 
खड़े हुए सीना तान
 
परती खेत ‘अबके असाढ में’
 
:जुतेंगे औ’ ।
 
घटती है, बढती है
 
मुड़ती है, चढती है-
 
दीवट, ओसारे में, की
 
:जागती-मचलती लौ ।
 
फूस का बड़ा छप्पर
 
खाली है, सोयेंगे सब बाहर;
 
बछिया से तनिक परे
 
:सहन में बँधी है गौ ।
 
मुखिया, सरपच, लोग ।-
 
जुटा नहर पार जोग :
 
चंग और डफ बाजे
 
:घुँघरू में आई रौ ।
 
नकलें औ’ राग-रंग
 
देख सभी हुए दंग
 
आयी जब सुध , जाना
 
:पूरब में फटती पौ ।
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