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कतकी पूनो / अज्ञेय

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: छिटक रही है चांदनी,
मन में दुबकी है हुलास ज्यों परछाईं हो चोर की--
तेरी बाट अगोरते ये आँखें हुईं चकोर की !
 
 
</poem>
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