भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ओ बीच की पीढ़ी के लोगो,
तुम युवतर पीढ़ी से कहते हो:
::तुम घृणा के धुन्ध में जनमे थे
::तुम आज भी घृणा करो।
::गली-गली, नुक्कड़-चौराहे
::बचे खड़े खंडहरों
::या कि युद्ध के बाद रचे स्मारक-स्तूपों को देख-देख
::फिर याद करो
::वह घृणा
::धुन्ध
::कालिमा—
::वही घृणा फिर ह्रदय धरो!
तुम जो खुद उन के नाम के बल पर जिस तुमसे पहले की पीढ़ी ने <br>उन्हें जना <br>क्या उन सेजीते हो, ओ बिचौलियो! यह पूछा था <br> वे क्या मरे वह बल घृणा में? <br>को ही देना चाहते हो— खंडहर होंगे ढूह घृणा उन के <br>और घृणा के स्मारक होंगे नए तुम्हारे थम्भनाम का बल, <br>:::::चौर, गुम्बद, मीनारेंउन का बल, <br> पर वे जो मरे <br>जिन्होंने अपने प्राण घृणा में को नहीं, प्यार में मरे! <br>को दिए, जिस स्मारकों को नहीं, मिट्टी को दाब रहे हैं ये स्मारक सदर्पदिए, <br> चप्पा-चप्पा उस कामोल आँकनेवालों की नहीं, कनी-कनी साक्षी है <br>उस अनन्य एकान्त प्यार का <br>जो कि घृणा से उपजे हर संकट मूल्यों को काट गया! <br> <br>दिए...
पीढ़ी-दर-पीढ़ी!
<span style="font-size:14px">वोल्गोग्राद (स्तालिनग्राद) <br>
जून १९६६</span>
</poem>