भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अमल रद्दे अमल / अनवर ईरज

10 bytes added, 13:30, 4 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अनवर ईरज
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
न्यूटंस लॉ
 
न कल ग़लत था
 
न आज है
 
न ही कल ग़लत साबित हो सकेगा
 
तुम ठीक कहते हो
 
कि हर अमल का
 
एक रद्दे अमल होता है
 
लेकिन ये भी ग़लत नहीं है
 
कि हर अमल का
 
एक जवाज़ भी होता है
 
दीवार पे गेंद
 
जितनी तेज़ी से
 
मारोगे
 
उतनी ही तेज़ी से
 
तुम्हारे पास लौट आएगी
 
तुम सच कहते हो
 
बिल्कुल सच कि
 
गुजरात
 
गोधरा का रद्दे अमल है
 
गोधरा
 
किसका रद्दे अमल था?
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits