भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाज़ार में / अनिल पाण्डेय

14 bytes added, 16:05, 4 नवम्बर 2009
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
बिक रहा था सब कुछ
 
'कुछ' के साथ 'कुछ'
 
मिल रहा था उपहार में
 
आलू प्याज टमाटर की तरह
 
भाव, विचार, रीति, सुनीति
 
सबके लगे थे भाव
 
फुटकर नहीं थोक में
 
लोग ख़रीद रहे थे
 
सबके साथ सब
 
कुछ के साथ सब
 
एक के साथ सब
 
कुछ को मिल रहा था
 
कुछ व्यवहार में
 
मैं खोज रहा था शिष्टाचार
 
किसी ने चेताया
 
''यह नहीं नीति संसार
 
तुम खड़े हो बाज़ार में ।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits