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{{KKRachna
|रचनाकार=अनीता वर्मा
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प्रभु मेरी दिव्यता में
सुबह-सबेरे ठंड में कांपते
उस ग्लानि से कि मैं महंगी शॉल ओढ़ सकूं
और मेरी नींद रिक्शे पर पड़ी रहे.
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