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|रचनाकार=अभिज्ञात
}}
{{KKCatKavita}}<poem>स्पन्दन बचा है अभी
कहीं, किन्हीं, लुके-छिपे संबंधों में
प्रलय को न्योतते हुए
नहीं लजाएँगे अगली सदी तक हम।
 
</poem>
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