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रिश्ता / अरुण कमल

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|रचनाकार=अरुण कमल
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वह समझ नहीं पाती क्या करे
 
रिश्ते में बड़ी पर हैसियत छोटी
 
यहाँ इतने नौकर-चाकर और वह ख़ुद
 
एक सेठ के घर महराजिन
 
अब आरम्भ होगी विधि
 
जो बड़े हैं उनकी पैरपुजाई
 
और वह खड़ी है वहीं मंडप के बाहर
 
बेमौसम के फल-सी
 
सबसे पहले उसी की है बारी
 
सबसे बड़ी फूआ गृहस्थ की।
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