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भूसी की आग / अरुण कमल

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|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
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जाड़े की रात थी
 
मिट्टी की बोरसी में धान की भूसी की
 
थोड़ी-सी आग थी
 
आग के ऊपर
 
एक दूसरे के तर-ऊपर
 
कई जोड़े हाथ थे
 
अपने को सेंकते,
 
तभी किसी बच्चे ने
 
लोहे की सींक से आग उकटेरी
 
और धाह फेंकती लाल आग
 
को देख कर सबने सोचा--
 
भूसी की आग भी बड़ी तेज़ होती है ।
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