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कौन पढ़ेगा ? / नरेन्द्र मोहन

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अब भी
 
चमक में छिपा है कोई संदेश
कल के लिए
 
गिरती दीवारों पर अंकित है
एक अबूझ लिपि
 
कौन पढ़ेगा
ढहती इमारत की भाषा ?