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नया पृष्ठ: '''रचनाकार : नरेन्द्र मोहन''' माँ के उरोज़ों के बीच बहती-लहराती नदी …
'''रचनाकार : नरेन्द्र मोहन'''


माँ के उरोज़ों के बीच

बहती-लहराती नदी में

डूबता-उतराता रहता था

बचपन में


आज मैं साठ की दहलीज पर हूँ

कई तीखी-गहरी, मदमाती-उफनती नदियाँ

देख चुका हूँ

कई नद, नाले, पहाड़

लाँघ चुका हूँ


आज न माँ है न नदी

चित्र है नदी का और

माँ याद आती है !