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अहरा / त्रिलोचन

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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>किसनू ने उपलों का अहरा लगा दिया।
फिर ढाक के पत्ते ले कर
दोने और पातरें बना डालीं।

अहरे पर हँदिया चढा दी गई
अब उस की देखरेख करने के लिए
इंद्रनाथ पंडित अहरे की घेर में जा बैठे
कोई पास पहुँच गया तो उसे ऊँची आवाज़ में
डाँटते थे छू न जाय।

हँडिया में दाल भाजी एक में पकडाए गए
किसनू ने आटा गूँध कर भौरियाँ बना लीं
भोजन हो जाने पर किसनू को चौके से बाहर
परोस दिया, और उसे सावधान कर दिया--
देखना तुम्हारी रोटियाँ कहीं कुत्ता न झपट ले जाय।

भाजी सहित पकी दाल स्वादिष्ट बन गई थी
भोजन से निबट कर किसनू नें पंडित के
पाँव दावे।

29.09.2002</poem>
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