भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साही / त्रिलोचन

944 bytes added, 14:54, 8 नवम्बर 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन }}<poem>साही के शरीर पर काँटे ही काँटे होते…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>साही के शरीर पर काँटे ही काँटे
होते हैं जो उस पर हमला करने वाले से
उस की रक्षा करते हैं।

जब संकट नहीं होता तब अंधेरी रात में
साही सावधानी से चलता है, उस के चलने से
काँटों से जो आवाज होती है उस से
जान पड़ता है कोई तरुणी पायल नूपुर पहने
प्रिय से मिलने के लिये जा रही है।

आत्मरक्षा के लिये साही के सभी काँटे
शत्रु को घायल कर देते हैं।

13.10.2002</poem>
750
edits