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अग्निबीज / नागार्जुन

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[[Category:नागार्जुन]]
[[Category:कविताएँ]]
{{KKSandarbh
|लेखक=नागार्जुन
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|प्रकाशक=
|वर्ष=
|पृष्ठ=
}}

अग्निबीज<br>
तुमने बोए थे<br>
रमे जूझते,<br>
युग के बहु आयामी<br>
सपनों में, प्रिय<br>
खोए थे!<br>
अग्निबीज<br>
तुमने बोए थे<br><br>

तब के वे साथी<br>
क्या से क्या हो गए<br>
कर दिया क्या से क्या तो,<br>
देख–देख<br>
प्रतिरूपी छवियाँ<br>
पहले खीझे <br>
फिर रोए थे<br>
अग्निबीज<br>
तुमने बोए थे<br><br>

ऋषि की दृष्टि <br>
मिली थी सचमुच<br>
भारतीय आत्मा थे तुम तो<br>
लाभ–लोभ की हीन भावना<br>
पास न फटकी<br>
अपनों की यह ओछी नीयत<br>
प्रतिपल ही<br>
काँटों–सी खटकी<br>
स्वेच्छावश तुम<br>
शरशैया पर लेट गए थे<br>
लेकिन उन पतले होठों पर<br>
मुस्कानों की आभा भी तो<br>
कभी–कभी खेला करती थी!<br>
यही फूल की अभिलाषा थी<br>
निश्चय¸ तुम तो<br>
इस 'जन–युग' के<br>
बोधिसत्व थे;<br>
पारमिता में त्याग तत्व थे। <br><br>