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पैग़ामबर / फ़राज़

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|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=दर्द आशोब / अहमद फ़राज़
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{{KKCatNazm}}
सबके दिल हैं क़हक़हों से चूर
लेकिन आँख से आँसू रवाँ<ref>बहते हुए</ref>
सब के सीनों में उम्मीदों<ref>आशाओं </ref>के चरागाँ<ref>दीपक</ref>दीपक
और चेहरों पर शिकस्तों<ref>पराजय</ref>का धुआँ
ज़िन्दगी सबसे गुरेज़ाँ<ref>भागते हुए</ref>
सू-ए-मक़्तल <ref>वधस्थल की ओर</ref>सब रवाँ<ref>चलते हुए</ref>
सब नहीफ़ो-नातवाँ<ref>क्षीण व निर्बल</ref>
सब के सब इक दूसरे से हमसफ़र<ref>सहयात्री</ref>
ले के आया हूँ तुम्हारे वास्ते वो मोजज़े<ref>चमत्कार</ref>
जिनसे भर जाएँगे पल-भर में तुम्हारे
अनगिनत सदियों के ला-तादाद<ref>असंख्य</ref>ज़ख़्मदम बख़ुद<ref>मौन</ref>साँसों को ठहराए हुए बेजान -जिस्म
मुंतज़िर<ref>प्रतीक्षारत</ref> हैं क़ुम-ब-इज़्नी<ref>मेरी आज्ञा से ही उठ</ref>की सदा-ए-सहर<ref>प्रात: की पुकार</ref>के
एशिया पैग़म्बरों की सरज़मीं<ref>दूतों और अवतारों की धरती</ref>
अपने हमजिन्सों <ref>सजातीय लोगों</ref>
के सीनों को टटोला है कभी?
सब की रूहें<ref>आत्माएँ</ref>गर्स्ना<ref></ref>... सब की मता-ए-दर्द <ref>दुखों की पूँजी</ref>में
दूसरों का ख़ून पीने की हवस<ref>लोभ लालच</ref>
एक का दुख दूसरों से कम नहीं