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* [[कह रही है पेड़ की हर शाख़ अब तुम आ रहे अपने बसेरे / हरिवंशराय बच्चन]]
* [[हो चुका है चार दिन मेरा तुम्हारा, हेम हंसिनि, और इतना भी यहाँ पर कम नहीं है / हरिवंशराय बच्चन]]
* [[वाणबिद्ध मराल-सा अब मैं आ गिरा हूँ मैं अब तुम्हारी ही शरण में / हरिवंशराय बच्चन]]
* [[कहाँ सबल तुम, कहाँ निबल मैं, प्यारे, मैं दोनों का ज्ञाता / हरिवंशराय बच्चन]]
* [[झलक तुम्हारी मैंने पाई सुख-दुख दोनों की सीमा पर / हरिवंशराय बच्चन]]
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