भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=अश्वघोष
|संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष
}}[[Category:गज़ल]]<poem>
मैं फ़ँस गया हूँ अबके ऐसे बबाल में
फँसती है जैसे मछली, कछुए के जाल में।
उस आदमी से पूछो रोटी के फ़लसफ़े को
जो ढूँढता है रोटी पेड़ो की छाल में।में।
रूहों को कत्ल करके क़ातिल फ़रार है