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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}
<poem>रोशनी में दिखती हर चीज़ साफ है, पर कहने को बात होती इक रात है
सुध में जुबां चलती लगातार है, जरा सी पी ली तो कहिए कि क्या बात है
इसकी सुनी उसकी सुनी सबकी सुनी, दिन भर सुनी सुनाई सुनते रहे
दिन भर दिल यह कहता रहा कि कुछ तुम्हारी भी सुनें कि क्या बात है
मिलता ही रहा हूँ हर दिन तुमसे, कैसी आज की भी इक मुलाकात है
क्या दर्ज़ करूँ क्या अर्ज़ करुँ, ऐ मिरे दोस्त क्या कहूँ कि क्या बात है
मुफलिसी से परेशां हम हैं सही, अब देखो कि यह घनी बरसात है
कुछ तो चूएगा पानी छत से, कुछ आँखों से कहो कि क्या बात है
बहुत हुआ दिन भर की सियासत दिन भर दौड़धूप, अब तो रात है
अब मैं, तुम, शायर मिजाज़ शब-ए-ग़म, अब कहिए कि क्या बात है
दोस्तों को लग चुका है पता कि हम भी क्या बला क्या चीज़ हैं
कमाल लाल्टू कि ज़हीन इतने, कहते कि क्या बात है क्या बात है।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}
<poem>रोशनी में दिखती हर चीज़ साफ है, पर कहने को बात होती इक रात है
सुध में जुबां चलती लगातार है, जरा सी पी ली तो कहिए कि क्या बात है
इसकी सुनी उसकी सुनी सबकी सुनी, दिन भर सुनी सुनाई सुनते रहे
दिन भर दिल यह कहता रहा कि कुछ तुम्हारी भी सुनें कि क्या बात है
मिलता ही रहा हूँ हर दिन तुमसे, कैसी आज की भी इक मुलाकात है
क्या दर्ज़ करूँ क्या अर्ज़ करुँ, ऐ मिरे दोस्त क्या कहूँ कि क्या बात है
मुफलिसी से परेशां हम हैं सही, अब देखो कि यह घनी बरसात है
कुछ तो चूएगा पानी छत से, कुछ आँखों से कहो कि क्या बात है
बहुत हुआ दिन भर की सियासत दिन भर दौड़धूप, अब तो रात है
अब मैं, तुम, शायर मिजाज़ शब-ए-ग़म, अब कहिए कि क्या बात है
दोस्तों को लग चुका है पता कि हम भी क्या बला क्या चीज़ हैं
कमाल लाल्टू कि ज़हीन इतने, कहते कि क्या बात है क्या बात है।
</poem>