भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna । रचनाकार=नीलेश रघुवंशी }} <poem> जब होती हूं पेड़ों के करीब …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
। रचनाकार=नीलेश रघुवंशी
}}

<poem>
जब होती हूं पेड़ों के करीब
उसके बालों की खुशबू याद आती है
अर्थ जब पीछा करते हैं
याद आते हैं - तोतले शब्द
पहन लेती हूं कवच तोतले शब्दों का
जागता है आत्मविश्वास मेरे अंदर
तोतले शब्दों की उंगली पकड़
बोलियों के बाजार में टहलती हूं
आसमान जब भर जाता है
हवाई यात्राओं से
याद आ जाती हैं पतंग की डोर अपने में लपेटे
उसकी नन्हीं उंगलियां
हवाई यात्राओं ने रास्ता छोड दिया है
डोर कसी हुई है उंग लि यों में
और पतंग में सवार हैं मेरे सपने
उनका शरीर है आदमकद आईन
जिसमें दिख रहे हैं सबके बौने कद
उसकी आंखों में उगता है सूरज
और-
खेलता है चांद
छिपाछिपउल का खेल
जब भी होती हूं पेड़ों के करीब ।
</poem>
10
edits