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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शांति सुमन |संग्रह = }} {{KKCatKavita}} <poem> शहरों ने जाल बुने…
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{{KKRachna
|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह =
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
शहरों ने जाल बुने
हमने माना कि रिश्ते नए
सो रही है जाने कहाँ
एक हल्की गुलाबी मिठास
कुछ आकाश ऐसा रहा
हट गए पत्थरों के लिबास
बादलों के ये साये घने
और भी धूप के हाशिये
रख गयी धुनकर रुई सा
अनगिन यात्राओं की याद
कुछ समय अंश ऐसे रहे
हाथों में सागर के झाग
झुकी हुई पीठ क्या तने
बस बुझे हुए क्षण ही जिये
</poem>
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|रचनाकार=शांति सुमन
|संग्रह =
}}
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शहरों ने जाल बुने
हमने माना कि रिश्ते नए
सो रही है जाने कहाँ
एक हल्की गुलाबी मिठास
कुछ आकाश ऐसा रहा
हट गए पत्थरों के लिबास
बादलों के ये साये घने
और भी धूप के हाशिये
रख गयी धुनकर रुई सा
अनगिन यात्राओं की याद
कुछ समय अंश ऐसे रहे
हाथों में सागर के झाग
झुकी हुई पीठ क्या तने
बस बुझे हुए क्षण ही जिये
</poem>