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{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
}}
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तुमसे अनुमति लेकर चला जाऊंगा एक दिन
कभी न ख़त्म होने वाली उस यात्रा पर
जीवन के पहले दिन हो गई थी जिसकी शुरुआत
अब तक धूप की तरह मिले थे कुछ लोग
कुछ लोग छाँव की तरह
ठंडक बनकर मिले थे कुछ लोग
कुछ लोग गर्मी
घाव की तरह मिलने वाले भी कम नहीं थे
कम नहीं थे मरहम की तरह मिलने वाले
अपनी तरह मिलीं केवल तुम
अपनी तरह मिलने वालों से
अनुमति लेकर जाना होता है उस यात्रा पर
जीवन के पहले दिन होती है जिसकी शुरुआत
'''रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा'''
'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रविन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
</poem>
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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
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तुमसे अनुमति लेकर चला जाऊंगा एक दिन
कभी न ख़त्म होने वाली उस यात्रा पर
जीवन के पहले दिन हो गई थी जिसकी शुरुआत
अब तक धूप की तरह मिले थे कुछ लोग
कुछ लोग छाँव की तरह
ठंडक बनकर मिले थे कुछ लोग
कुछ लोग गर्मी
घाव की तरह मिलने वाले भी कम नहीं थे
कम नहीं थे मरहम की तरह मिलने वाले
अपनी तरह मिलीं केवल तुम
अपनी तरह मिलने वालों से
अनुमति लेकर जाना होता है उस यात्रा पर
जीवन के पहले दिन होती है जिसकी शुरुआत
'''रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा'''
'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रविन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
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