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मानवी-कला के सूत्रधार!
हर लिया यन्त्र-कौशल-प्रवाद।
::जड़वाद जर्जरित जग में तुम::अवतरित हुए आत्मा महान,::यन्त्राभिभूत जग में करने::मानव-जीवन का परित्राण;::बहु छाया-बिम्बों में खोया::पाने व्यक्तित्व प्रकाशवान,::फिर रक्त-माँस प्रतिमाओं में::फूँकने सत्य से अमर प्राण!संसार छोड़ कर ग्रहण कियानर-जीवन का परमार्थ-सार,अपवाद बने, मानवता केध्रुव नियमों का करने प्रचार;हो सार्वजनिकता जयी, अजित!तुमने निजत्व निज दिया हार,लौकिकता को जीवित रखनेतुम हुए अलौकिक, हे उदार!::मंगल-शशि-लोलुप मानव थे::विस्मित ब्रह्मांड-परिधि विलोक,::तुम केन्द्र खोजने आये तब::सब में व्यापक, गत राग-शोक;::पशु-पक्षी-पुष्पों से प्रेरित::उद्दाम-काम जन-क्रान्ति रोक,::जीवन-इच्छा को आत्मा के::वश में रख, शासित किए लोक।
'''रचनाकाल: मई’१९३५'''
</poem>
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